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चकरबिहु / कैलाश चौधरी
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ई दुनिया में कोय आदमी
बन्धन में रहेले नञ चाहऽ हइ
पर गियान नञ रहे से
अपने बँध जा हइ
जानऽ सब हइ कि
दुनिया माया के बाजार हइ
आउ स्वारथ
एगो बडको बन्धन हइ।
ऊ खाली बन्धने नञ हइ
चकरबिहु हइ चकरबिहु
जेकरा में इन्सान
जाने-अनजाने फँसिये जा हइ
निकले ला उपाय भी करऽ हइ
पर लोभ-लालच में
ओकरे में
आउ उलझते चल जाहइ।
जदि इ बन्धन से
छुटकारा चाहऽ हऽ
त पहले स्वारथ के छोड़ऽ
ओकरा से अलग रहबऽ
देश-समाज के काम में लगबऽ
नया इतिहास गढ़बऽ
जिनगी सफल हो जइतो।