चकल्लस (कविता) / पढ़ीस
अगहनी पुन्नमासी क्यार म्याला देखि छकि आयउँ;
पयिसवा तीनि आना तूरि का परसाद घर आयऊँ।
दुयि घरी दउस<ref>दिवस, दिन</ref> के चढ़तयि रहकला<ref>छोटे आकार की साधारण बैलगाड़ी</ref>,
बहला<ref>रथनुमा सजी हुई बैलगाड़ी</ref> अउ अदधा<ref>लढ़ी बड़े आकार की बैलगाड़ी से आधे आकार की बैलगाड़ी</ref>;
चलयि लागीं चह्वद्दी ते कहाँ संभारू कयि पायउँ।
चला टींडी तना मनई, न ताँता टूट दुयि दिन तक;
कचरि छा सात गे तिनमा, अधमरा मयिं घरयि आयउँ।
सुर्ज बइठे मुजाका<ref>उस पर मजा यह, फारसी शब्द मुजायका, बहरहाल</ref> का कि द्वासर दिनु भवा म्याला;
गड़ी गैसै, बरयि बिजुली, चमाका देखि चउँध्यान्यउँ।
जहाँ द्याखउ तहाँ ददुआ, लाग ठेंठर<ref>थियेटर</ref> गड़े सरकस;
ठाढ़ तंबू कनातन मा चक्यउँ, चउँक्यउँ कि बउरान्यउँ।
जो देख्यउँ याक म्बहरे<ref>म्वहरा, दरवाजा, प्रवेश द्वार</ref> माँ बड़ी भीरयिं<ref>भीड़ें, आदमियों का समूह</ref> बड़े जम्मट<ref>जमघट, लोगो के समूह का इकट्ठा होना</ref>;
महूँ टोयउँ कि अलबट्टी पयिसवा सात हे पायउँ।
उठयिं रूपयन की छर्रयि अउर गुलछर्रयि करयि बाबू;
टिकस के चारि आना जानि मयिं जर-मूड़ ते सूख्यउँ।
चवन्नी की रहयि जवँधरी परी झ्वारा म पीठी पर;
मुलउ टिक्कसु उधारउ काढ़ि का काका न लयि पायउँ।
लिहिनि बढ़कायि दस बजतयि सबयि खिरकिन कि टटियन का;
ठनक तबला कि भयि भीतर टीप फिरि याक सुनि पायउँ।
जो बाढ़ी चुल्ल<ref>अदमय इच्छा</ref> खीसयि काढ़ि का बाबू ति मयिं बोल्यउँ;
‘‘घुसउँ भीतर?’’ चप्वाटा कनपटा पर तानि का खायउँ।
यितनिहे पर न ख्वपड़ी का सनीचरू उतरिगा चच्चू;
सउँपि दीन्हिसि तिलंगन<ref>पुलिस के सिपाहीगण, द्वारपाला</ref> का चारि चवुका हुँअँउँ खायउँ।
रहयिं स्यावा समिरिती<ref>समिति, सामाजिक सेवा संस्था</ref> के बड़े मनई कि द्यउता उयि;
किहिनि पयिंयाँ-पलउटी तब छूटि थाने ति फिरि पायउँ।
चला आवति रहउँ हफ्फति तलयि तुम मिलि गयउ ककुआ;
रोवासा तउ रहउँ पहिले ति तुमका देखि डिंड़कार्यउँ<ref>चिल्लाकर रोना</ref>।
तनकु स्यहितायि ल्याहउँ, तब करउँ बरनकु चकल्लस का;
पुरबुले पाप कीन्ह्यउँ, तउन दामयि दाम भरि पायउँ।