भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चक्की चले / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
चक-चक चकर-चक चक्की चले,
हो रामा! हो रामा! हो रामा!
भोर से उठ माँ रामधुन गाए,
ठस हाथ उस हाथ पाट घुमाए,
पाट जो घूमे तो धरती ‘हले’,
हो रामा! हो रामा! हो रामा!
पंछी को दाना, ढोरों को सानी,
चिंता जगत की माँ में समानी,
माँ, तेरे दम से गिरस्थी चले,
हो रामा! हो रामा! हो रामा!