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चक्रान्त शिला – 26 / अज्ञेय

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आँगन के पार द्वार खुले
द्वार के पार आँगन।
भवन के ओर-छोर
सभी मिले-उन्हीं में कहीं खो गया भवन।
कौन द्वारी कौन आगारी, न जाने,
पर द्वार के प्रतिहारी को
भीतर के देवता ने
किया बार-बार पा-लागन।