चक्षु खोल निरखता रहा चाँद को / विमल राजस्थानी
धूप ने तो जलाया सही बात थी
चाँदनी से जले हम, नयी बात है
दिन का जलना-जलाना तो देखा बहुत
बात अचरज भरी-जल रही रात है
दिन के जलने-जलाने का झुलसा बदन
फूल कुम्हला गये, लुट गया था चमन
पंख के रंग तितली के फीके पड़े
बन न पायी कली एक खिलता सुमन
साँझ होते उम्मीदों को पर लग गये
क्या पता था कि दिन रात से मात है
चक्षु खोले निरखता रहा चाँद को
प्यार की बूँद को मन तरसता रहा
वेधती ही रही प्राण को चाँदनी
रात भर चन्द्र-पावक बरसता रहा
चाँदनी-चाँद दोनों कुँआरे जले
जल उठी लाखों तारों की बारात है
दिन से मिलना हुआ तो बदन जल गया
चाँद ने भी तपन की दौ सौगात है
धूप का धर्म आतप सदा ही रहा
था विवश तन-बदन, ताप हरदम सहा
मन ने चाहा सुधा-धार में लोटना
चाँद के अंग से अग्नि-निर्झर बहा
चाँद की रश्मियाँ बन गयीं
चाँदनी अग्नि की ही तो बरसात है