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चट्टानी है शहर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
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चट्टानी है शहर
उसी में सूरज डूबा
नदी-किनारे के गुंबद में जोत क़ैद है
अम्मा कहती थीं - सूरज ही महाबैद है
किसे दिखाएँ
हिरदय है साँसों से ऊबा
चारों ओर खड़ीं मीनारें अंधी-बहरी
विश्वहाट की घर में है परछाईं गहरी
थका हुआ है
रामराज का भी मंसूबा
अचरज - भीतर उमड़ी गंगा, साधो, औचक
किसी व्यास ने कहा अभी ही नेह-कथानक
आँखों में था
जगा देवघर - हुआ अज़ूबा