भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चट्टानी है शहर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चट्टानी है शहर
उसी में सूरज डूबा

नदी-किनारे के गुंबद में जोत क़ैद है
अम्मा कहती थीं - सूरज ही महाबैद है
 
किसे दिखाएँ
हिरदय है साँसों से ऊबा

चारों ओर खड़ीं मीनारें अंधी-बहरी
विश्वहाट की घर में है परछाईं गहरी

थका हुआ है
रामराज का भी मंसूबा

अचरज - भीतर उमड़ी गंगा, साधो, औचक
किसी व्यास ने कहा अभी ही नेह-कथानक

आँखों में था
जगा देवघर - हुआ अज़ूबा