भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चट्टान को तोड़ो वह सुन्दर हो जायेगी / केदारनाथ सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चट्टान को तोड़ो
वह सुन्दर हो जायेगी
उसे तोड़ो
वह और, और सुन्दर होती जायेगी

अब उसे उठालो
रख लो कन्धे पर
ले जाओ शहर या कस्बे में
डाल दो किसी चौराहे पर
तेज़ धूप में तपने दो उसे

जब बच्चे हो जायेंगे
उसमें अपने चेहरे तलाश करेंगे
अब उसे फिर से उठाओ
अबकी ले जाओ उसे किसी नदी या समुद्र के किनारे
छोड़ दो पानी में
उस पर लिख दो वह नाम
जो तुम्हारे अन्दर गूँज रहा है
वह नाव बन जायेगी

अब उसे फिर से तोड़ो
फिर से उसी जगह खड़ा करो चट्टान को
उसे फिर से उठाओ
डाल दो किसी नींव में
किसी टूटी हुई पुलिया के नीचे
टिको दो उसे
उसे रख दो किसी थके हुए आदमी के सिरहाने

अब लौट आओ
तुमने अपना काम पूरा कर लिया है
अगर कन्धे दुख रहे हों
कोई बात नहीं
यक़ीन करो कन्धों पर
कन्धों के दुखने पर यक़ीन करो

यकीन करो
और खोज लाओ
कोई नई चट्टान!

(1977)