भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चढ़ता हुआ दरिया भी उतर जायेगा इक दिन / मोहम्मद इरशाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चढ़ता हुआ दरिया भी उतर जायेगा इक दिन
और तेरा मुकद्दर भी सँवर जायेगा इक दिन

घर जल गया तो तूने ज़बाँ से ना कुछ कहा
ख़ामोश रहना तेरा असर लायेगा इक दिन

अब छोड़ कर जायेगा कहाँ अपना ही साया
तन्हा रहा तो ख़ुदा से भी डर जायेगा इक दिन

तू ना सँवार बार-बार अपने गुरूर को
ये आईना भी टूट बिखर जायेगा इक दिन

तुझ को जब देखने का शऊर आयेगा ‘इरशाद’
हर सिम्त बस ख़ुदा ही नज़र आयेगा इक दिन