भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चढ़ाई का जुनून / संतोष श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिड़िया फुदकती हुई
शीशम की
जिस डाल पर बैठी है
उसके तने पर
पहली कुल्हाड़ी चल चुकी है

शीशम कट रहा है
उसके कटने की आवाज़
जंगल का दिल दहला रही है

 देख रही है चिड़िया
अपने घोसले को
धराशाई होते
अपने घायल चूजों को
तड़पते, मरते

उसकी कातर पुकार
नहीं पहुँच पाती
उन सोपानो तक
जिनकी ऊँचाइयाँ
आकाश छू रही हैं

सोपानो पर चढ़ते
पैरों के गहरे निशान
नहीं देख पाते
चिड़िया की कातरता
शीशम की पीड़ा भी तो
अनकही रह जाती है

चढ़ते पैरों का जुनून
कितना कुछ रौद डालता है