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चढ़े चंग /राम शरण शर्मा 'मुंशी'

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देखे अनदेखे अंग
जैसे कुछ चढ़े चंग
तेज़ और तीखे रंग
नित नव उठे तरंग
मुखर किन्तु निस्संग
ऊर्जित उन्मद उमंग
थिरता स्थिर, अभंग
चंचल करवाल, खंग
कट-कट गिरते अनंग
जय जय शिव, जय गंग !