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चढ़ो अटारी धीरे धीरे / कुँवर बेचैन
Kavita Kosh से
चढ़ो अटारी धीरे-धीरे
रखना दीप संभालकर
एक शिकन भी रह ना जाये
उजियारे के गाल पर।
पहन घाघरा, चूड़ी, बिछुए
छन-छन घुँघरू पाँव के
करके झिलमिल दीप प्रकाशित
अपन तन के गाँव के
चढ़ो अटारी धीरे-धीरे
रखना दीप संभालकर
जैसे तुम बेंदी रखती हो
अपने गोरे भाल पर।
भर के मांग सिंदूरी अपनी
दृग में काजल आँजकर
अपनी सोने-सी मूरत को
और प्यार से माँजकर
चढ़ो अटारी धीरे-धीरे
रखना दीप संभालकर
ज्यों मेंहदी के फूल काढ़तीं
तुम मन के रूमाल पर।
हँसुली, हार और लटकारा
बाजूबंद, हमेल से
कह देना नथुनी-कुंडल से
सदा रहें वे मेल से
चढ़ो अटारी धीरे-धीरे
रखना दीप संभालकर
ज्यों तुम विमल चाँदनी मलतीं
तन के लाल गुलाल पर।