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चढ़ गया सबकी नज़र में / ओंकार सिंह विवेक

चढ़ गया सबकी नज़र में,
बात है कुछ उस बशर में।

सच का हो कैसे गुज़ारा,
छल-कपट के इस नगर में।

पाँव के छाले न देखे,
हमने मंज़िल की डगर में।

हमसफ़र भी है ज़रूरी,
ज़िंदगानी के सफ़र में।

रौशनी की कौन सुनता,
थी अँधेरों के असर में।

कोई भी कब है मुकम्मल,
कुछ कमी है हर बशर में।

क्या भला अख़बार पढ़ना,
डर मिलेगा हर ख़बर में।