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चतुर सयानों ने कल / कुमार रवींद्र
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चतुर सयानों ने कल मिलकर
सगुन बिचारा
सायत-घड़ी शोधकर उनने
सपने बीजे
व्यापीं बंजर घटनाएँ
दिन असमय छीजे
पुरखों का था कुआँ
हुआ उसका जल खारा
बाँधे उनने
किसिम-किसिम के नये सरोवर
किंतु मिला जल नहीं
मिले बस काँकर-पाथर
सबके सीने भरें
नेह की मिली न धारा
रचा छाँव का खेल
धूप लाने की धुन में
भेद नहीं रह गया कोई भी
गुन-अवगुन में
बिगड़ी सारी बात
उन्होंने लाख सँवारा