भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चनन रगड़ी सुभासतीं, गरवा कापे के हार / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
चनन रगड़ी सुभासतीं, गरवा कापे के हार,
इंगुरोना पांग भरउँतीं, चढ़ि गये मास आसाढ़।
आहो चढ़ि गये मास आसाढ़, इंगुरों ना मांग भरउँती।।१।।
सावन मास महीनवाँ, रिमझिम बरिसत देव, अब हो रिमझिम वरिसत देव
एक मोर भींजवलें रेसम, नैना भींजे अलमोल, अब हो नैना भींजें अलमोल।।२।।
भादोहीं मास महीनवाँ, भरि गये नदिया गंभीर, अब हो भरि गये नदिया गंभीर
लवका लवके, बिजली तड़के, केकरे ओसरवा होइबों ठाढ़, अब हो केकरे।।३।।
कुआरहीं मास महीनवाँ, कुँअरा गइले विदेस, अब हो कुँअरा गइले विदेस।
नांनन कोइलर कुहके, कोइलर शब्द सुनाई, अब हो कोइलर शब्द सुनाई।।४।।
कातिक मास महीनवाँ, लागे कतिकी पूर्णवांस, अब हो लागे कतकी पूर्णवांस।
लहाई खोरी शिवजी पूजे, शिवजी देत असीस, जुग-जुग जिहें रउरे कन्त,
कन्त लाख बरीस, अब हो कन्त लाख बरीस।।५।।
अगहन मास महीनवाँ, पहिरब अगरे की चीर, इहो चीर बैसहल मोर बलमू के,
अब हो इहो चीर बेसहल मोर बलमू के हो।।६।।
पूसहीं मास महीनवाँ, पूस-बरती लहाई, अब हो पूस-बरती लहाई।
लहाई बोरिये शिवजी पूजे, शिवजी देत असीस, अब हो शिवजी देत असीस।।७।।
माघहीं मास महीनवाँ, सब सखी सिरखा भराई, जब हो सब सखी सिरखा भराई।
हमरो पिया रहतें सिरखा भरवतीं, खेपतीं मघवा के जाड़,
अब हो खेपतीं मघवा के जाड़।।८।।
फागुन मास महीनवाँ, सब सखी अबीरा घोराइ, अब हो सब सखी अबीरा घोराई।
जानकी के हाथे पिचकारिया, घर-घर खेलती अबीर,
अब हो खेलती रंग गुलाब।।९।।
चइत मास महीनवाँ फूले टेसू री गुलाब, अब हो फूले टेसू री गुलाब,
टेसू री ऊपरी कोइलर कुहुके, कोइलर शब्द सुनाई,
अब हो कोइलर शब्द सुनाई।।१0।।
बइसाखहीं मास महीनवाँ, सब सखी बँगला छवाई,
अब हो सब सखी बँगला छवाई।
बँगला के छँहें बालम सूते, हम धनि बेनिया डोलाईं
अब हो हम घनि बेनिया डोलाईं।।११।।
जेठहीं मास महीनवाँ पुग गये मनवा के आस, अब हो पुग गये मनवा के आस।
दोआदसी प्रभु चरन, पुग गये बरहो जमात, अब हो पुग गये बारहो जमाता।।१२।।