भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चना चंद की नाक / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
गेहूँ सिंह ने, चना चंद के,
कान पकड़कर खींचे।
धक्का खाकर चना चन्द जी,
गिरे धम्म से नीचे।
टेडी हो गई चना चन्द की,
लंबी प्यारी नाक।
पर दुनियाँ में किसी तरह से,
बचा पाये वे साख।
चना चन्द की गेहूँ सिंह से,
अब भी पक्की यारी।
कान पकड़कर गेहूँसिंह ने,
बोल दिया था सारी।
पान उमारिया पान का
सौंफ सुपारी कलकत्ते की,
चूना राजस्थान का।
कत्था शहर कानपुर का है,
पिपरमेंट जापान का।
चालीस बीड़ा चबा चुका है,
पट्ठा हिन्दुस्तान का।
क्या कहने हैं खाकर देखो,
पान उमरिया पान का।