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चन्द्रमा / बुद्धिनाथ मिश्र

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चौरा पर साँझ दीप बारि कें
पूजा सँ प्यार बनल चन्द्रमा
राति जेकर ठाँढि धेने ठाढि अछि
गाछ सिंगरहार बनल चन्द्रमा ।

काँच बाँस बान्हल आकाशदीप
बिहुँसल अछि फेर कोनो बात पर
मोती सन आखर सँ प्रेमपत्र
लिखि गेल अछि के पुरइन-पात पर

नीनक मातल चानन गाछ तर
एक समाचार बनल चन्द्रमा ।

अयना मे सतरंगी प्रेमगीत
झलकै अछि माछ जेना जाल मे
कालिन्दी मे नहाइत राधिका-
कृष्णक अभिसार बनल चन्द्रमा ।

कहलो ने मानै मन- मृग जखन
बंसी-स्वर पसरै अछि साँझ-भोर
एखनो धरि मोन परैए अहाँक
गहना छारल देहक पोर-पोर

दूभि-धान पान-फूल सँ भरल
सोना कें थार बनल चन्द्रमा।