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चन्द्र दीपक रात भर जलता रहा / रंजना वर्मा
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चन्द्र दीपक रात भर जलता रहा
और तारों का सफ़र चलता रहा
चूम कर लौ को शलभ सब जल गये
पर शमा का प्यार तो पलता रहा
राह पर नजरें टिकी थीं रात भर
अश्रु आँखों से यूँ ही ढलता रहा
यूँ तो महफ़िल में बहुत से लोग थे
बस न आना आप का खलता रहा
पा लिया रवि बिम्ब को जब सामने
तब लगा शशि स्वयं को छलता रहा
अपनी छाया ही थी अनजानी लगी
व्यर्थ दर्पण की सतह मलता रहा
जब हवा ने कर लिया रुख इस तरफ
स्वप्न हर हिमखंड सा गलता रहा