भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चन्द्र / सुलोचना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये सर्व वीदित है चन्द्र
किस प्रकार लील लिया है
तुम्हारी अपरिमित आभा ने
भूतल के अंधकार को
क्यूँ प्रतीक्षारत हो
रात्रि के यायावर के प्रतिपुष्टि की
वो उनका सत्य है
यामिनी का आत्मसमर्पण
करता है तुम्हारे विजय की घोषणा
पाषाण-पथिक की ज्योत्सना अमर रहे
युगों से इंगित कर रही है
इला की सुकुमार सुलोचना
नही अधिकार चंद्रकिरण को
करे शशांक की आलोचना