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चन्द लम्हों के लिए तूने मसीहाई की / फ़राज़
Kavita Kosh से
चन्द लम्हों<ref>क्षणों</ref>के लिए तूने मसीहाई<ref>इलाज</ref>की
फिर वही मैं हूँ वही उम्र है तन्हाई <ref>अकेलापन</ref>की
किस पे गु़ज़री न शबे-हिज्र<ref>विरह की रात</ref>क़यामात<ref>प्रलय</ref>की तरह
फ़र्क़ इतना है कि हमने सुख़न-आराई<ref>काव्य-रचना</ref>की
अपनी बाहों में सिमट आई है वो क़ौसे-क़ुज़:<ref>इंद्र-धनुष</ref>
लोग तस्वीर ही खींचा किए अँगड़ाई की
ग़ैरते-इश्क़<ref>प्रेम का स्वाभिमान</ref>बजा तान-ए-याराँ <ref>मित्रों के कटाक्ष</ref>तस्लीम<ref>स्वीकार्य</ref>
बात करते हैं मगर सब उसी हरजाई की
उनको भूले हैं तो कुछ और परेशाँ<ref>दु:खी</ref>हैं ‘फ़राज़’
अपनी दानिस्त<ref>जानकारी</ref>में दिल ने बड़ी दानाई <ref>समझदारी</ref>की
शब्दार्थ
<references/>