भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चप्पल पर भात / वीरेन डंगवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किस्सा यों हुआ
कि खाते समय चप्पल पर भात के कुछ कण
गिर गए थे
जो जल्दबाज़ी में दिखे नहीं ।
फिर तो काफ़ी देर
तलुओं पर उस चिपचिपाहट की ही भेंट
चढ़ी रहीं
तमाम महान चिन्ताएँ ।