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चमकता नयन में था काजल बादल-सी प्राण! हुई पुतली / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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चमकता नयन में था काजल बादल-सी प्राण! हुई पुतली।
मेरा दृग-गंगाजल सहती थी तेरी नरमायी अँगुली।
माथे पर थी बिखरी श्लथ लट हो जैसे निशि-शशि का जमघट।
तुम कंज-मंजु-मृदु क्षीण अँगुलियों से सरका कर घूँघट पट।
पी गये अश्रु-जल, कहा, न रीते मनसिज-मधु-ॠतु की बेला।
प्रियतमे! रहेगा अमर सदा प्रेयसि-उर प्रियतम-उर खेला।
है महामना ! व्याकुल बदना बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥73॥