भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चमक / अरविन्द कुमार खेड़े
Kavita Kosh से
सर्द कुहांसे में
स्कूल जाते
एक बच्चे ने अचानक
अपनी साईकिल को खड़ी कर
ऊनी दस्ताने को निकाल
छुआ ओंस की बूंदों को
हरे-हरे पत्तों पर जो
कर रही हैं अठखेलियाँ
चमक उठा बच्चे का चेहरा
या ख़ुदा
आज सूरज का
दीदार न कराना
आज रात
चाँद को न उतारना
बस भेज देना तारों को
जमीं पर.