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चमन दर चमन वी रमक अब कहां / नासिर काज़मी
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चमन दर चमन वी रमक अब कहां
वो शोले शफ़क़-ता-शफ़क़ अब कहां
करां-ता-करां ज़ुल्मतें छा गईं
वो जलवे तबक़-दर-तबक़ अब कहां
बुझी आतिशे-गुल, अंधेरा हुआ
वो उजले सुनहरे वरक़ कब कहां
बराबर है मिलना न मिलना तेरा
बिछड़ने का तुझसे क़लक़ अब कहां।