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चमन में क़ैद है जबसे बहार का मौसम / अभिषेक कुमार सिंह
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चमन में क़ैद है जबसे बहार का मौसम
ठहर गया है यहाँ इंतज़ार का मौसम
कड़कती धूप में बरसात होने लगती है
पकड़ में आता नहीं है बिहार का मौसम
हमारे मुल्क की फ़ितरत न जाने कैसी है
ठहरता ही नहीं है रोज़गार का मौसम
तगादा कर रहा है रोज़ वक़्त का मुंशी
हमारे खाते में है बस उधार का मौसम
किसी भी जंग में मेरा यक़ीन है ही नहीं
मुझे पसंद नहीं जीत-हार का मौसम
तमाम उम्र फ़क़त रूठता ही रहता है
तुनकमिज़ाज है कितना ये प्यार का मौसम
इसी उमीद के साये में हैं शजर ज़िंदा
कभी तो आएगा मिलने बहार का मौसम