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चम्पई सीढ़ियाँ / रमेश रंजक
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झील की हिमकरी छाँह-सी
तैरती आँख की
बेकली ।
हिल उठीं चम्पई सीढ़ियाँ
रूप दुहरा बिखरने लगा
हर दिशा में धुले अंग से
मोतिया रंग झरने लगा
काँपते कूल पर धर चरण
ज्योत्सना डुबकियाँ
ले चली ।