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चरण में सृष्टि तेरे सर नवाती है / रंजना वर्मा

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चरण में सृष्टि तेरे सिर नवाती है ।
सतत तू ज्ञान की गंगा बहाती है।।

सदा तेरी कृपा की चाह है जग को
सदय माता हमेशा मुस्कुराती है।।

करुण स्वर में बुलाते भक्तजन तुमको
मगन स्वर छंदमय वीणा बजाती है।।

चली आ छोड़ कर तू स्वर्ग की माया
धरा निशि दिन तेरे ही गीत गाती है।।

दया तेरी बहाती छंद की धारा
सुधी जन को कला अमृत पिलाती है।।

विराजो हृदय के कहलार पर माता
हमें तेरी चरण रज ही सुहाती है।।

न हो ऐसा कि तू देखे नहीं हम को
ये दुनिया तुझ से ही तो मान पाती है।।