भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चरन धरै न भूमि बिहरै तहाँई जहाँ / मतिराम
Kavita Kosh से
चरन धरै न भूमि बिहरै तहाँई जहाँ ,
फूले फूले फूलनि बिछायो परयँक है ।
भार डरनि सुकुमार चारु आँगन मे ,
अँग ना लगावैँ चारु केसरि को पँक है ।
कवि मतिराम लखि वातायन बीच आयो ,
आतप मलिन होत बदन मयँक है ।
कैसे सुकुमार वह बाहिर बिजन आवै ,
बिजन बयारि लागे लचकत लँक है ॥
मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।