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चरन धरै न भूमि बिहरै तहाँई जहाँ / मतिराम

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चरन धरै न भूमि बिहरै तहाँई जहाँ ,
फूले फूले फूलनि बिछायो परयँक है ।
भार डरनि सुकुमार चारु आँगन मे ,
अँग ना लगावैँ चारु केसरि को पँक है ।
कवि मतिराम लखि वातायन बीच आयो ,
आतप मलिन होत बदन मयँक है ।
कैसे सुकुमार वह बाहिर बिजन आवै ,
बिजन बयारि लागे लचकत लँक है ॥


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।