भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चरम-बिन्दु / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
एक लमहा
फ़र्क है —
होने,
न होने में !
बहुत सूक्ष्म सीमा है
अस्तित्व
और
अनस्तित्व के मध्य,
फ़र्क है
सिर्फ़ रेखा भर
हँसने
और रोने में !
बहुत सूक्ष्म अन्तर है
अभिव्यक्ति में
अन्तःकरण की !
सम्भव नहीं है
खींचना सरहद
जनम की, मरण की !
स्थितियाँ —
समतुल्य हैं लगभग !
युग-युग सँजोयी साध
कब किस क्षण अचानक
मूर्त हो जाए ;
अमूर्त हो जाए ;
एक पल झपकी
बहुत है
पाने और खोने में !
एक लमहा
फ़र्क है —
होने;
न होने में !