भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चराग़ों ने अपने ही घर को जलाया / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चराग़ों ने अपने ही घर को जलाया
कि हैरां है इस हादसे पर पराया.

किसी को भला कैसे हम आज़माते
मुक़द्दर ने हमको बहुत आज़माया.

दिया जो मेरे साथ जलता रहा है
अँधेरा उसी रौशनी का है साया.

रही राहतों की बड़ी मुंतज़िर मैं
मगर चैन दुनियां में हरगिज़ न पाया.

संभल जाओ अब भी समय है ऐ ‘देवी’
क़यामत का अब वक्त नज़दीक आया.