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चलते-चलते हार गया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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चलते- चलते हार गया हूँ
फिर भी धारा पार गया हूँ।
पथ- बाधा से रोज़ घिरा हूँ
कभी उठा हूँ, कभी गिरा हूँ।
बाधाओं से सदा लड़ा हूँ
हार-हारकर सदा खड़ा हूँ।
माना मैं नहीं बहुत बड़ा हूँ
जीवन- रण में खूब अड़ा हूँ
मुझको पत्थर ही वे समझे
गहन नींव में सदा गड़ा हूँ।
माना मैं हूँ कुछ का प्यारा
माना मैं किस्मत का मारा
में केवल अपनों से हारा
मैं झूठे सपनों से हारा ।
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