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चलते-चलते / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
चलते-चलते अब हमें
परखने लगे तुम्हारे नाम पर
ये आख़िरी आँसू!
बहुत सी भाप है, जब साथ है
देखें, कहाँ तक और कितनी साथ जाती है?
वो ही पुराना धुँआ, पुरानी आग है,
जिसमें पिछली ज़िन्दगी जलती-सी नज़र आती है,
अपरिचय माँते, तो किससे, कहाँ से, कब से?
जब बड़े परिचित थे,
सगे-से लगे तुम्हारे नाम पर
ये आख़िरी आँसू!
समय से हारी नहीं, इतनी पूरी भी नहीं,
इतनी अधूरी भी नहीं, हर रोज उभरती है,
जिस दर्द की नयी परतें
हम उसे उम्र की सरहदों तक ले आये हैं,
अब फिर आँसू हमें परखें,
जो कालजयी हों, ऐसी तो नहीं हैं हमारी आँखें
पर आज जब बनने लगे,
तो बड़े अ़धबने-से लगे, तुम्हारे नाम पर
ये आख़िरी आँसू!
चलते-चलते अब हमें परखने लगे
तुम्हारे नाम पर ये आख़िरी आँसू!