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चलना चाहिए / चंद्रभूषण

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एक शाम दफ्तर से तुम लौटते हो

और पाते हो कि सभी जा चुके हैं


अगल- बगल तेज घूमती रौशनियाँ हैं

घरों पर छाई पीली धुंध के ऊपर

अँधेरे आसमान में आखरी पंछी

परछाइयों की तरह वापस लौट रहे हैं


तुम किसी से कुछ भी कहना चाहते हो

मगर पाते हो कि सभी जा चुके हैं


तुम्हारे पास कोई गवाह कोई सुबूत है?

आख़िर कैसे साबित करोगे तुम

कि सबकुछ जैसा हो गया है

उसके जिम्मेदार तुम नहीं हो?


निर्दोष होने के भावुक तर्क

अपने फटे हुए ह्रदय का बयान-

तुम सोचते हो यह सब तुम्हारे ही पास है?


बिल्कुल खाली अंधियारी सीढ़ियों पर

देर तक अपनी सांसों की आवाज सुनना...

इस एहसास के साथ कि इतने करीब से

किसी और की साँसें सुनने का वक्त अब जा चुका है


दुनिया में अबतक हुई बेवफाइयों के सारे किस्से

एक-एक कर तुम्हारी मदद को आते हैं

कैसी सनक मिजाजी

कि उन्हें भी तुम पास फटकने नहीं देते


आख़िर किसलिये

किस पाप के लिए तुम दण्डित हो-

पूछते हो तुम और पाते हो कि

अभी-अभी यह सवाल किसी और ने भी पूछा है


चौंको मत

क्षितिज के दोनों छोरों के बीच तनी

सवालों की यह एक धात्विक शहतीर है

जो थोड़ी-थोड़ी देर पर यूं ही

हवाओं से बजती रहती है


वन मोर चांस प्लीज-

किसी चुम्बन की फरियाद की तरह

तुम जीने के लिए एक और जिंदगी माँगते हो

और फिर बिना किसी आवाज के

देर तक धीरे-धीरे हँसते हो


हँसते हैं तुम्हारे साथ गुजरे जमानों के अदीब


नाभि से उठ कर कंठ में अटका धुआं निगलते हुए

शायद उन्हीं को सुनाते हो तुम-


सब चले गए फिर हमीं यहाँ क्यों हैं

बहुत गहरे धंस गयी है रात

हमे भी कहीँ चलना चाहिए