भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलना है साथ-साथ, मचलना है साथ-साथ / गिरिराज शरण अग्रवाल
Kavita Kosh से
चलना है साथ-साथ, मचलना है साथ-साथ
ठोकर अगर लगे तो सँभलना है साथ-साथ
संदेश दे रही है यह बदली हुई हवा
अब हमको औ' समय को बदलना है साथ-साथ
इस यात्रा में कोई किसी से अलग न हो
रुकना है सबके साथ तो चलना है साथ-साथ
लगता है इंतिज़ार की फिर आ गई है रात
अब मुझको और चिराग़ को जलना है साथ-साथ
अनजान रास्ते पे अकेले नहीं चलो
लंबा सफ़र है, घर से निकलना है साथ-साथ