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चलन चला ये गाँव में / सुरजीत मान जलईया सिंह
Kavita Kosh से
कोई किसी के घर न जाये
चलन चला ये गाँव में
रिश्तों की पगडण्डी टूटी
चाचा ने मुंह मोड लिया
छोड ताऊ ने भी अपनो को
गैरों से घर जोड लिया
अम्मा रो - रो ढेर हो रही
देख बेढियां पाँव में
कोई किसी के घर न जाये
चलन चला ये गाँव में
सबने अपना अपना रोया
सम्पत्ति बटबारे पर
भाभी का हथ फूल को गया
बहिना के रखवारे पर
बुआ के सम्बादों से फिर
आग लगी है छांव में
कोई किसी के घर न जाये
चलन चला ये गाँव में
फूफा ने भी नमक डालकर
चौखट घर के गला दिये
कुछ तरकस से तीर पुराने
नाना ने भी चला दिये
हमने अपना घर खोया है
अपनों के ही दांव में
कोई किसी के घर न जाये
चलन चला ये गाँव में…