चला आता हूँ अपने पथ पर / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
चला आता हूँ अपने पथ पर
लेकर भावों के तूफान
कि पूरे हो जायेंगे मेरे
जीवन के सारे अरमान
दिशाएँ मौन, स्तब्ध आकाश,
मगर हँसती, दुनिया अनजान
कि तिरता हुआ उदधि में लखकर
मेरा छोटा सा जलयान
यही है पागलपन की बात
न की मैंने अबतक परवाह
व्याथामय कथा उलझती रही
तड़पती रही किनारे आह
न देखा मैंने अबतक लौट,
न पूछा क्या है इसका मर्म
समझता रहा कर्ममय भूमि
कि जीवन में है कर्म प्रधान
गरजता रहा सिन्धु इस ओर
कड़कती रही बिजलियाँ दूर
कि मिलकर करने मेरे मन के
भावों को सब चकनाचूर
मगर हूँ अबतक मैं निभ्रन्ति
भले दुनियाँ समझे भयभीत
अभी तक मैं गाता आया हूँ
मस्ती में जीवन संगीत
भला कैसे छू सकती क्लान्ति
अगर है अन्तर की कोई बात
हृदय में हो अटूट विश्वास
भले हो मंजिल मेरी दूर,
मगर मैं युग-युग से गतिमान
लुढ़कती रहे राह पर विघ्न
और बाधाओं की चट्टान