चलि रे अबिला कोयल मौरी ,
धरती उलटि गगन कूँ दौरी ।
गईयां वपडी सिंघ नै घेरै
मृतक पसू सूद्र कूँ उचरै ।
काटे ससत्र पूजै देव
भूप करै करसा की सेव ।
तलि कर ढकण ऊपरि झाला
न छीजेगा महारस बंचैगा काला ।
दीपक बालि उजाला कीया
गोरष के सिरि परबत दीया ।