भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलीं निशि में तुम, आईं प्रात / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
चलीं निशि में तुम आई प्रात;
नवल वीक्षण, नवकर सम्पात,
नूपुर के निक्वण कूजे खग,
हिले हीरकाभरण, पुष्प मग,
साँस समीरण, पुलकाकुल जग,
हिले पग जलजात।