भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चली जल को सीता सुकुमारी / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
चली जल को सीता सुकुमारी
रघुकुल-वधू, प्रिया-त्रिभुवननायक की, जनक-दुलारी
उभरे चित्र विकल कर मन को
फिर पति के सँग निकली वन को
चित्रकूट पर फिर दर्शन को
जुड़े अवध-नर-नारी
फिर कंचन-मृग मन को भाया
प्रभु को धनु-शर ले दौड़ाया
देवर से हठ स्मृति में आया
गली ग्लानि की मारी
दिखे भालु-कपि शीश झुकाये
लौटी अवध, हर्ष फिर छाये
टूटा ध्यान, नयन भर आये
फिरी लिए घट भारी
चली जल को सीता सुकुमारी
रघुकुल-वधू, प्रिया-त्रिभुवननायक की, जनक-दुलारी