चली जाने कैसी हवा आजकल है
ज़ुब़ां में घुली बद्-दुआ आजकल है। 
भरोसा था जिस पर हमारा-तुम्हारा
वही दे रहा क्यों दग़ा आजकल है। 
न रिश्ते की ख़ुशबू से तर होता आँगन
ख़ुदी में ख़ुदा जी रहा आजकल है। 
यकीं का गला घोंटना रोज़ जारी
गुलिस्तां भी सहमा-डरा आजकल है। 
हुआ मतलबी आदमी आज कितना
सुधा में गरल फेंटता आजकल है। 
ख़बर-खोज रखता नहीं अब पड़ोसी
मदद पर ही ताला जड़ा आजकल है।