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चली जाने कैसी हवा आजकल है / कैलाश झा 'किंकर'

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चली जाने कैसी हवा आजकल है
ज़ुब़ां में घुली बद्-दुआ आजकल है।

भरोसा था जिस पर हमारा-तुम्हारा
वही दे रहा क्यों दग़ा आजकल है।

न रिश्ते की ख़ुशबू से तर होता आँगन
ख़ुदी में ख़ुदा जी रहा आजकल है।

यकीं का गला घोंटना रोज़ जारी
गुलिस्तां भी सहमा-डरा आजकल है।

हुआ मतलबी आदमी आज कितना
सुधा में गरल फेंटता आजकल है।

ख़बर-खोज रखता नहीं अब पड़ोसी
मदद पर ही ताला जड़ा आजकल है।