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चली डगर पर कभी न चलने वाला मैं / मनचंदा बानी
Kavita Kosh से
चली डगर पर कभी न चलने वाला मैं ।
नए अनोखे, मोड़ बदलने वाला मैं ।
तुम क्या समझो, अजब-अजब इन बातों को
आग कहीं हो, यहाँ हूँ जलने वाला मैं ।
बहोत ज़रा सी ओस, भिगोने को मेरे
बहोत ज़रा सी आँच, पिघलने वाला मैं ।
बहोत ज़रा सी ठेस, तड़पने को मेरे
बहुत ज़रा सी मौज, उछलने वाला मैं ।
बहोत ज़रा सा सफ़र, भटकने को मेरे
बहुत ज़रा सा हाथ, संभलने वाला मैं ।
बहुत ज़रा सी सुब्ह, बकसने<ref>खिलने</ref> को मेरे
बहोत ज़रा सा चाँद, मचलने वाला मैं ।
बहोत ज़रा सी राह, निकलने को मेरे
बहोत ज़रा सी आस, बहलने वाला मैं ।
शब्दार्थ
<references/>