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चलु चलु भैया हो सजन धरहरवा से / रघुनन्दन झा
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चलु चलु भैया हो सजन धरहरवा से,
जहाँ में बिराजैं बाबा मेँहीँ हो सजनवाँ।
आम अमरूद लीची केदली के उपवन,
शीतल पवन नित बहै हो सजनवाँ॥
एक ओर साधु संत करै सतसँगवा से,
देखी मन ममता बिसारै हो सजनवाँ।
मुख नेत्र बंद करि श्रवण अंगुलि धरि,
जस सोभै अपर गौतम हो सजनवाँ॥
सहज एकान्त वास रहत दिवस निशि,
काहु से न एको शब्द बोलै हो सजनवाँ।
ऐसन निर्मल संत प्रगट जगत बीच,
जन ‘रघुनन्दन’ सुभाग हो सजनवाँ॥