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चलु चलु मन मोरा, सतगुरु धाम रे / रामेश्वरदास
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चलु चलु मन मोरा, सतगुरु धाम रे।
छुटी जावे आवागमन के काम रे॥1॥
चोरी जारी नशाँ हिंसा, झूठ बतियान रे।
छोड़ि देहो पंच पाप, नरक निशान रे॥2॥
सत संग गुरु सेवा, भजन-ध्यान रे।
करि लेहो नित प्रति, होइवे कल्यान रे॥3॥
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु सदा शीव रे।
गुरु हीं शब्द ब्रह्म, पार ब्रह्म पीव रे॥4॥
‘रामदास’ जपो गुरु, मंत्र धरो धियान रे।
नरतन कब छूटै, कोइ न ठिकान रे॥5॥