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चलू सजाबी लोकक जीवन / एस. मनोज
Kavita Kosh से
जहि धरती पर विद्यापति छथि
चंदा झा सन छथि विद्वान
ओहि धरती पर चलू देखाबी
काला आखर महिस समान
चलू मेटाबी अहि कलंककें
जे धरती अछि सोना उगलैत
पोखरि पोखरि माँछ मखान
ओहि धरती पर चलू देखाबी
भुक्खल अछि मजदूर किसान
चलू मेटाबी अहि पीड़ाकें
जहि भाषामे हरिमोहन छथि
यात्री जी सन गुण केर खान
ओ भाषा आय सिकुड़ि रहल अछि
सिमटि रहल मैथिल केर मान
चलू बढ़ाबी अप्पन भाषा
जहि धरती पर भारती गार्गी
मंडनमिश्रक जन्मस्थान
ओहि धरती पर बाढ़िक विपदा
सौंसे मिथिला अछि फिरिसान
चलू सजाबी लोकक जीवन