भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलू - चलू आहे सखी / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चलू-चलू आहे सखी
सीता सँ हरदि पिसयबे करी
हरदि कौशिल्या निकालू जल्दी
सुमित्रा तोहें माछ नेने ठाढ़ी
जँ तोहे होयब सीता एक बापक बेटी
एक हाथे हरदि पिसयबे करी
जनकपुर के चेरी करथि मिनती
हमर सीता बापक दुलारी बेटी
ई की तोहें चेरी बजलऽ मिनती
भौजीसँ हरदि पिसयबे करी