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चलेंगे, गिरेंगे, गिरकर संभल लेंगे / सांवर दइया
Kavita Kosh से
चलेंगे, गिरेंगे, गिरकर संभल लेंगे।
सदा की तरह अपना ही संबल लेंगे।
इतना सफ़र जब अकेले तय कर लिया,
रहे-रहे दो-चार क़दम भी च लेंगे।
गले तक धंसे थे तब भी नहीं पुकारा,
घुटनों चढ़े दलदल से खुद निकल लेंगे।
ढलान में फ़िसले तो कोई मिला नहीं,
समतल में ये क़दम आप सभल लेंगे।
नहीं चाहते दुम हिलाकर शिखर छूना,
जो लेंगे, अपनी क्षमता के बल लेंगे!