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चलें फुरती सें माय / कस्तूरी झा ‘कोकिल’
Kavita Kosh से
चलें फुरती सें माय!
गेहूँवाँ केॅ दैयाँ ओसाय ले।
आग सन धूपोॅ में देहो तबै लौं,
माँग चाँग बरोॅ के जोड़ी जुटै लौं,
नूनूकही बाबू कही दिनभर घुमै लौं,
खूँटी गड़ल गोड़ खून बहै लौं।
दुनियाँ नयी अब बसाय ले,
चलें फुरती सें माय!
गेहूँवाँ केॅ दैयाँ ओसाय ले।
भेलै सबेरा पूरवा बहै छै,
देखू पीपल के पात डोलै छै।
कुहू-कुहू मधु कोयल कूकै छै,
तन-मन प्राण भाय सम्भे हरै छै।
जरा जल्दी सें दौरा उठाय ले,
चलें फुरती सें माय!
गेहूँवाँ केॅ दैयाँ ओसाय ले।
दुनियाँ नयी हम कहाँ सें बसैबै?
बाँकी रूपैया केना हम चुकैबै?
रोज महाजन केॅ प्यादा आबै छै,
थारी, लोटा, घोॅर, छप्पर छीनै छै,
एकरे केन्हूँ बचाय ले,
चलें फुरती सें माय!
गेहूँवाँ केॅ दैयाँ ओसाय ले।
-15.05.1969