भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चले आओ कि याद अक्सर दिले-दीवाना करता है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
चले आओ कि याद अक्सर दिले-दीवाना करता है
तुम्हारा इंतिज़ार अब भी ये बे-ताबाना करता है

किसी ने मुस्कुरा कर मुझ को देखा ही सही लेकिन
ज़माना क्यों ज़रा सी बात को अफ़साना करता है

अगर बे-लौस उल्फ़त उठ चुकी है दहर से नासेह
तो क्यों क़ुर्बान अपनी ज़िन्दगी परवाना करता है

खिरद-मंदों से भी बढ़ कर खिरद-मंदाना होती हैं
जो बातें बे-ख़ुदी में आप का दीवाना कहता है

बड़ी अनमोल शय है कर भी ले नादां क़ुबूल इस को
दिल अपना पेश रहबर अज़-रहे-नज़राना करता है।