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चले जा रहे हैं चले जा रहे हैं / सुधेश

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चले जा रहे हैं चले जा रहे हैं
नहीं पर पता है किधर जा रहे हैं।

किसी ने कहा है तरक़्क़ी यही है
तरक़्क़ी के मारे छले जा रहे हैं।

हमीं बुद्धिजीवी हमीं शकितशाली
जिन्हें गर्व इतना वे पछता रहे हैं।

दिलों में है नफ़रत मुहब्बत ज़बाँ पर
यही इक तराना सभी गा रहे हैं।