चलोॅ-चलोॅ परदेशी चलोॅ हमरोॅ गाँव / बैकुण्ठ बिहारी
चलोॅ-चलोॅ परदेशी चलोॅ हमरोॅ गाँव
प्रेम के झरना जहाँ झरै झर-झर
समता पलै जहाँ अचरा छाँव
पुरवा जहाँ ठोकी-ठोकी सुलावै
भोरे दखनहवां झकझोरी केॅ जगावै
धरती के खोइछा सें मोती चुगै लेॅ
पूरब सें सोना के हंस एक आवै
पिया के संदेशा बिरहिन केॅ सुनावै
छपरी पर कागा करी काँव-काँव
कँगना के खन-खन राग ओढ़नी के खर-खर
गोरी के गीत संग जाँता के घर-घर
गैया के बाँटोॅ से अमृत झरै छै
बुढ़िया माय ठोकै देवाली पर गोबर
बाबा तेॅ बोरसी तर चिलम पीयै छै
एक दम खींची करै खाँव-खाँव
पत्ता में छिपी केॅ कोयलिया बोलै
सब के मनोॅ में उमंग-भंग घोलै
महुवा के डारी से चूवै छै मस्ती
भौंरा कली के घूॅघट-पट खोलै
चकवा-चकइयो मिलन-गीत गावै
पपिहा के ठोरोॅ पर पियवा के नाव
फुफकारै जेठ बनी नागनियां कारं
गइया धोरैया में खोजोॅ मुरारी
खेते कैलाश जहाँ धुनी रमावै
बनी किसान शिव भोला भण्डारी
दुनियाँ लेॅ महल अटारी उठावै
आपने लेॅ टुटली मड़ैया के छाँब
भागी आवै गोरी देखी मेघ बरसाती
फेरू नै खबर कत्तेॅ पिया अब घाती
नोची केॅ हार गोरी सरंगोॅ में फेकै
चमकै छै वहेॅ बनी बगुला के पाँती
मोरवा केॅ वैरिन मोरनियाँ नचावै
चाहै कि गल्ला में लपटी ही जाँव
साँझ पहर बुतरू खेलै घो-घो रानी
लौटैं पनभरनी लै घइला में पानी
टुटलोॅ पलानी में भुुकुर-भुकुर ढिबरी
सुखरैं कबीर, सूर, तुलसी के वाणी
करूआ समुद्दर में शब्द सब डुबलोॅ
कुतिये टा खाली करै झाँव-झाँव
सालो भरी सब्भैं पूजै देवी आरी देवता
ओकर्है में अपर अतिथि के सेवा
सागे खिलैथौं विदुर प्रेम सानी
पैवा यहाँ नै दुर्योधस के मेवा
चौका लगाय केॅ आसन बिछैतौं
तोरा बैठैतौं पखारी केॅ पाँव