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चलो अब दूर हो जायें / नवीन कुमार सिंह
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ये दुनिया तोड़ दे हमको कि हम मजबूर हो जायें
ये बेहतर है समय रहते चलो अब दूर हो जायें
लिखे जो खत तुम्हें मैंने बहा दो आज दरिया में
बसा लो एक नया घर तुम मुहब्बत की नगरिया में
कहीं ऐसा न हो कि जख्म सब नासूर हो जायें
ये बेहतर है समय रहते चलो अब दूर हो जायें
यहाँ लैला भी तड़पी है, यहाँ मंजनू भी तड़पे हैं
कहर हर चाहने वालो पे, इस दुनिया के बरपे हैं
नहीं मुमकिन अरज अपनी यहां मंजूर हो जाये
ये बेहतर है समय रहते चलो अब दूर हो जायें
तेरी यादें मेरी आँखों के पर्दे पर सलामत हैं
तेरी यादें मेरी सांसो की खातिर भी इबादत हैं
मेरी आँखों के आँसू, ना कहीं मशहूर हो जायें
ये बेहतर है समय रहते चलो अब दूर हो जायें